अर्गला स्तोत्र के फायदे | Argala Stotram Benefits in Hindi

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इस पोस्ट में हम आपको हिंदी में “अर्गला स्तोत्र के फायदे” के बारे में बताएंगे। माँ दुर्गा की कृपा प्राप्त करने का सबसे सरल तरीका है दुर्गा सप्तशती का पाठ करना, और इस पाठ को पूरा करने में “अर्गला स्तोत्र” का महत्वपूर्ण योगदान होता है।

“अर्गला” शब्द का अर्थ होता है “अग्रणी” और यह स्तोत्र सभी प्रकार की अड़चनों और समस्याओं को दूर करने में सहायक होता है। हमारे हिन्दू धर्म के ग्रंथों के अनुसार, किसी भी कार्य की सिद्धि के लिए “अर्गला स्तोत्र” का पाठ करना महत्वपूर्ण माना जाता है।

श्री दुर्गा सप्तशती में, देवी कवच के बाद और किलक स्तोत्र के पूर्व, “अर्गला स्तोत्र” का पाठ करने का प्रक्रिया विवरणित है।

अर्गला स्तोत्र के फायदे (Benefits of Argala Stotram in Hindi)

  1. शीघ्र जीवनसाथी पाने के लिए: अर्गला स्तोत्रम का पाठ विवाह में आने वाली रुकावटों को दूर करने में मदद करता है और जीवनसाथी के साथ खुशियों की प्राप्ति में सहायक होता है.
  2. शत्रुओं के नाश के लिए: अर्गला स्तोत्रम का पाठ आपको शत्रुओं और दुश्मनों से मुक्ति प्रदान कर सकता है, जो आपकी खुशियों में अड़चन डाल रहे हों.
  3. धन और विद्या लाभ के लिए: यह स्तोत्र आपके पास धन और शिक्षा की प्राप्ति में सहायक हो सकता है, जब आपके पास संकट और रुकावटें हों.
  4. रोगों से मुक्ति के लिए: अर्गला स्तोत्रम का पाठ रोगों और बीमारियों के खिलाफ रक्षा कर सकता है, और आपको स्वस्थ जीवन देने में मदद कर सकता है.
  5. नौकरी और व्यापार में उन्नति: इस स्तोत्र का पाठ नौकरी या व्यापार में सफलता प्राप्त करने में मदद कर सकता है, जब आपका मेहनती प्रयास फल नहीं दे रहा हो.
  6. सौभाग्य की प्राप्ति के लिए: अर्गला स्तोत्रम का पाठ आपके दुर्भाग्य को सौभाग्य में बदलने में मदद कर सकता है.
  7. सफलता प्राप्ति के लिए: कई बार कड़ी मेहनत के बाद भी व्यक्ति सफल नहीं हो पाता है। हजार कोशिशों के बावजूद भी यदि असफलताओं का सामना करना पड़े 
  8. बुद्धि के प्रखरता के लिए: एक उत्कृष्ट जीवन जीने के लिए, तेज दिमाग अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। यदि आप कई प्रयासों के बाद भी विद्या या किसी और क्षेत्र में गर्भवती भूलें, या यदि आपका मन बिना किसी वजह की चिंताओं में डूबा रहता है, तो अब आप अर्गला स्तोत्र का पाठ करना आरंभ कर सकते हैं। यह आपकी बुद्धि को तेज करने और आपकी अधिक क्षमताओं को विकसित करने का कार्य करेगा।
  9. मन के विकार होते हैं दूर: एक और फायदा इस बात का है कि अर्गला स्तोत्र का पाठ मात्र से ही मन में सभी दुश्मनी भावनाओं जैसे की ईर्ष्या, द्वेष और लोभ को दूर कर सकता है। अर्गला स्तोत्र मन को शांत और एकाग्र बनाने में मदद करता है।

Argala Stotram benefits in marathi

Argala Stotram is believed to offer various benefits according to Hindu tradition. Here are some of the claimed benefits in Marathi:

Argala stotram benefits in kannada

ಆರ್ಗಲಾ ಸ್ತೋತ್ರವು (Argala Stotravu) ಹಿಂದೂ ಸಂಪ್ರದಾಯದ ಪ್ರಕಾರ ವಿವಿಧ ಲಾಭಗಳನ್ನು ನೀಡುತ್ತದೆ ಎಂದು ನಂಬಲಾಗಿದೆ. ಇşte ಕನ್ನಡದಲ್ಲಿ ಪ್ರಯೋಜನಗಳ ಪಟ್ಟಿ:

  • ದೇವಿಯ ಕೃಪೆ (Deviateya Krupe): ಆರ್ಗಲಾ ಸ್ತೋತ್ರವು ದೇವತೆ ದುರ್ಗೆಯನ್ನು ಸಂತೈಸಲು ಸಮರ್ಪಿತವಾಗಿದೆ. ನಿಯಮಿತ ಪಠಣವು ದೇವಿಯ ಕೃಪೆಯನ್ನು (ಕೃಪೆ) ಪಡೆಯಲು ಸಹಾಯ ಮಾಡುತ್ತದೆ ಎಂದು ನಂಬಲಾಗಿದೆ.
  • ಸುಖ ಮತ್ತು ಸಮೃದ್ಧಿ (Sukha and Samruddi): ಈ ಸ್ತೋತ್ರವು ಜೀವನದಲ್ಲಿ ಸಂತೋಷ (ಸುಖ) ಮತ್ತು ಸಮೃದ್ಧಿಯನ್ನು (ಸಮೃದ್ಧಿ) ಉತ್ತೇಜಿಸುತ್ತದೆ ಎಂದು ಹೇಳಲಾಗುತ್ತದೆ.
  • ಶತ್ರು ನಿವಾರಣೆ (Shatru Nivaranne): ಸ್ತೋತ್ರವನ್ನು ಪಠಿಸುವುದರಿಂದ ಶತ್ರುಗಳನ್ನು (ಶತ್ರು) ಜಯಿಸಲು ಸಹಾಯ ಮಾಡುತ್ತದೆ ಎಂದು ಕೆಲವರು ನಂಬುತ್ತಾರೆ.
  • ರೋಗ ನಿವಾರಣೆ (Roga Nivaranne): ಈ ಸ್ತೋತ್ರವು ಗುಣಪಡಿಸುವ ಶಕ್ತಿಯನ್ನು ಹೊಂದಿದ್ದು, ಕಾಯಿಲೆಗಳನ್ನು (ರೋಗ) ತಡೆಯಲು ಸಹಾಯ ಮಾಡುತ್ತದೆ ಎಂದು ನಂಬಲಾಗಿದೆ.
  • ಮನಸ್ಸಿನ ಶಾಂತಿ (Manassina Shanthi): ನಿಯಮಿತ ಪಠಣವು ಮನಸ್ಸಿನ ಶಾಂತಿಯನ್ನು (ಮನಸ್ಸಿನ ಶಾಂತಿ) ತರುತ್ತದೆ ಎಂದು ಹೇಳಲಾಗುತ್ತದೆ.
  • ಇಚ್ಛಾ ಪೂರೈಸುವಿಕೆ (Iccha Pooraisuvike): ನಿಷ್ಠಾಭರಿತ ಪಠಣವು ಆಸೆಗಳನ್ನು (ಇಚ್ಛೆ) ಪೂರೈಸಲು ಸಹಾಯ ಮಾಡುತ್ತದೆ ಎಂದು ಭಕ್ತರು ನಂಬುತ್ತಾರೆ.

ಗಮನಿಸಬೇಕಾದ ವಿಷಯ:

ಈ ಪ್ರಯೋಜನಗಳು ಧಾರ್ಮಿಕ ನಂಬಿಕೆಗಳು ಮತ್ತು ಸಂಪ್ರದಾಯಗಳ ಆಧಾರದ ಮೇಲಿವೆ ಎಂಬುದನ್ನು ನೆನಪಿನಲ್ಲಿಡಬೇಕು. ಈ ಹೇಳಿಕೆಗಳನ್ನು ಬೆಂಬಲಿಸುವ ಯಾವುದೇ ವೈಜ್ಞಾನಿಕ ಪುರಾವೆ ಇಲ್ಲ.

ಆರ್ಗಲಾ ಸ್ತೋತ್ರವನ್ನು ಪಠಿಸುವ ನಿಜವಾದ ಪ್ರಯೋಜನವು ಭಕ್ತಿಯ ಕಾರ್ಯದಲ್ಲೇ ಇರಬಹುದು. ಪ್ರಾರ್ಥನೆಯ ಮೇಲೆ ಕೇಂದ್ರೀಕರಿಸುವುದರಿಂದ ನಿಮಗೆ ಮನಸ್ಸಿನ ಶಾಂತಿ ಮತ್ತು ಒಳ್ಳೆಯತನವನ್ನು ತರುತ್ತದೆ, ಇದು ನಿಮ್ಮ ಜೀವನದ ಮೇಲೆ 긍ಾತಾತ್ಮಕ ಪರಿಣಾಮ ಬೀರಬಹುದು.

Argala Stotram benefits in telugu

ఆర్గలా స్తోత్రం (Argala Stotram) యొక్క ప్రయోజనాల గురించి हिंदూ సాంప్రదాయం (Hindu Sampradayam) లో వివిధ ధारణలు ఉన్నాయి. వాటిలో కొన్నింటిని తెలుగులో ఇక్కడ తెలుసుకోవచ్చు:

  • దేవీ కృప (Devi Krupa): ఆర్గలా స్తోత్రాన్ని దుర్గాదేవిని (Durga Devi) ప్రసన్నం చేసుకోవడానికి చదువుతారు. నిరంతర పఠనం ద్వారా దేవీ కృప (blessings) లభిస్తుందని నమ్ముతారు.
  • సుఖ సంతోషాలు మరియు శ్రేయస్సు (Sukha Santoshalu mariyu Sreyassu): ఈ స్తోత్రాన్ని చదవడం వల్ల జీవితంలో సుఖ సంతోషాలు (happiness and prosperity) కలుగుతాయని నమ్ముతారు.
  • శత్రు నివారణ (Shatru Nivarana): కొందరు భక్తులు ఈ స్తోత్రాన్ని పఠించడం వల్ల శత్రువులను (enemies) జయించవచ్చని విశ్వసిస్తారు.
  • రోగ నివారణ (Roga Nivarana): ఈ స్తోత్రానికి వ్యాధులను (diseases) నయం చేసే శక్తి ఉందని, ఆరోగ్యాన్ని ఇస్తుందని నమ్ముతారు.
  • మనశ్శాంతి (Manas Santi): నిత్యం ఈ స్తోత్రాన్ని చదవడం వల్ల మనశ్శాంతి (peace of mind) లభిస్తుందని నమ్మకం.
  • ఇच्छాపూర్తి (Iccha Poorthi): నిष्ठతో పఠించడం వల్ల కోరికలు (desires) నెరవేరుతాయని భక్తులు విశ్వసిస్తారు.

ముఖ్యమైన గమనిక (Mukhyamైన Gamanika):

ఈ ప్రయోజనాలు హిందూ ధর্మ సాంప్రదాయాల ఆధారంగా ఉన్నాయని గుర్తించుకోవాలి. వీటిని శాస్త్రీయంగా నిరూపించడానికి ఎటువంటి ఆధారాలు లేవు.

แท้จริง కి ఆర్గలా స్తోత్రాన్ని పఠించడం వల్ల కలిగే ప్రయోజనం భక్తిపూర్వకమైన పఠనంలోనే ఉంటుంది. ప్రార్థనపై దృష్టి పెట్టడం వల్ల మనసుకు శాంతి, సంక్షేమం లభిస్తాయి. ఇవి మీ జీవితంపై సकारాత్మక ప్రభావాన్ని చూపించగలవు.

अर्गला स्तोत्र संस्कृत में | Argala Stotram in Sanskrit

॥ पढ़ें Argala Stotram in Sanskrit आसान शब्दों में ॥

॥ अथार्गलास्तोत्रम् ॥

ॐ अस्य श्रीअर्गलास्तोत्र-मन्त्रस्य विष्णु-र्ऋषिः,अनुष्टुप् छन्दः,
श्रीमहालक्ष्मीर्देवता, श्रीजगदम्बा-प्रीतये-सप्तशतीपाठाङ्गत्वेन जपे विनियोगः॥

॥ ॐ नमश्‍चण्डिकायै ॥

मार्कण्डेय उवाच

ॐ जयन्ती मङ्गला काली भद्र-काली कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु ते॥1॥

जय त्वं देवि चामुण्डे जय भूतार्ति-हारिणि।
जय सर्वगते देवि कालरात्रि नमोऽस्तु ते॥2॥

मधुकैटभ-विद्रा-विविधातृ-वरदे नमः।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥3॥

महिषासुर-निर्णाशि भक्तानां सुखदे नमः।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥4॥

रक्तबीज-वधे देवि चण्ड-मुण्ड-विनाशिनि।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥5॥

शुम्भस्यैव निशुम्भस्य धूम्रा-क्षस्य च मर्दिनि।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥6॥

वन्दिताङ्‌घ्रियुगे देवि सर्व-सौभाग्य-दायिनि।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥7॥

अचिन्त्य-रुपचरिते सर्वशत्रु-विनाशिनि।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥8॥

नतेभ्यः सर्वदा भक्त्या चण्डिके दुरि-तापहे।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥9॥

स्तु-वद्‌भ्यो भक्ति-पूर्वं त्वां चण्डिके व्याधि-नाशिनि।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥10॥

चण्डिके सततं ये त्वामर्चयन्तीह भक्तितः।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥11॥

देहि सौभाग्य-मारोग्यं देहि मे परमं सुखम्।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥12॥

विधेहि द्विषतां नाशं विधेहि बल-मुच्चकैः।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥13॥

विधेहि देवि कल्याणं विधेहि परमां श्रियम्।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥14॥

सुरासुर-शिरोरत्न-निघृष्ट-चरणेऽम्बिके।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥15॥

विद्या-वन्तं यशस्वन्तं लक्ष्मी-वन्तं जनं कुरु।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥16॥

प्रचण्ड-दैत्य-दर्पघ्ने चण्डिके प्रणताय मे।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥17॥

चतुर्भुजे चतुर्वक्त्र-संस्तुते परमेश्‍वरि।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥18॥

कृष्णेन संस्तुते देवि शश्‍वद्भक्त्या सदाम्बिके।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥19॥

हिमाचल-सुतानाथ-संस्तुते परमेश्‍वरि।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥20॥

इन्द्राणी-पति-सद्भाव-पूजिते परमेश्‍वरि।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥21॥

देवि प्रचण्ड-दोर्दण्ड-दैत्य-दर्प-विनाशिनि।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥22॥

देवि भक्त-जनोद्दामदत्ता-नन्दोदयेऽम्बिके।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥23॥

पत्नीं मनोरमां देहि मनोवृत्ता-नुसारिणीम्।
तारिणीं दुर्ग-संसार-सागरस्य कुलोद्भवाम्॥24॥

इदं स्तोत्रं पठित्वा तु महास्तोत्रं पठेन्नरः।
स तु सप्तशती-संख्या-वरमाप्नोति सम्पदाम्॥25॥

॥ इति देव्या अर्गलास्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥

अर्गला स्तोत्र हिंदी में । Argala Stotram in Hindi

ॐ चण्डिका देवी को नमस्कार है।

मार्कण्डेय ऋषि कहते हैं

जयन्ती, मंगला, काली, भद्रकाली, कपालिनी, दुर्गा, क्षमा, शिवा, धात्री, स्वाहा और स्वधा – इन नामों से ख्यातिमान हे माँ जगदम्बिके, तुम्हें मेरा नमस्कार है। ॥1॥

हे चामुण्डे देवी, तुम्हारी जय हो। सम्पूर्ण प्राणियों के कष्टों को हरने वाली देवी, तुम्हारी जय हो। संपूर्ण ब्रह्माण्ड में व्याप्त रहने वाली देवी, तुम्हारी जय हो। के माता कालरात्रि, तुम्हें नमस्कार है। ॥2॥

मधु और कैटभ का संहार करने वाली तथा भगवान् ब्रह्मा को भी वरदान देने वाली देवी, तुम्हे नमस्कार है। तुम मुझे रूप दो, जय दो, यश दो तथा मेरे भीतर के काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो। ॥3॥

महिषासुर का नाश करने वाली तथा अपने भक्तों को सुख प्रदान करने वाली देवी, तुम्हें नमस्कार है। तुम मुझे ज्ञान दो, विजय दो, यश दो और मेरे भीतर मौजूद काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो। ॥4॥

रक्तबीज का वध और चण्ड-मुण्ड का विनाश करने वाली हे देवी, आपको मेरा नमस्कार है। तुम मुझे ज्ञान दो, विजय दो, यश दो और मेरे भीतर मौजूद काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो। ॥5॥

शुम्भ और निशुम्भ तथा धूम्रलोचन का मर्दन करने वाली हे देवी, तुम्हें मेरा नमस्कार है। तुम मुझे ज्ञान दो, विजय दो, यश दो और मेरे भीतर मौजूद काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो। ॥6॥

सबके द्वारा पूजनीय युगल चरणों वाली तथा सभी प्रकार के सौभग्य को प्रदान करने वाली हे देवी, तुम मुझे ज्ञान दो, विजय दो, यश दो और मेरे भीतर मौजूद काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो। ॥7॥

हे देवी, तुम्हारा रूप और चरित्र दोनों की हीं कल्पना नहीं की जा सकती अर्थात वो अचिन्त्य हैं। तुम समस्त शत्रुओं का नाश करने वाली हो। हे देवी, तुम मुझे ज्ञान दो, विजय दो, यश दो और मेरे भीतर मौजूद काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो। ॥8॥

समस्त पापों को हरने वाली हे चण्डिके, जो भी भक्तिपूर्वक तुम्हारे चरणों में सदा अपने शीश को झुकाते हैं, उन्हें तुम ज्ञान दो, विजय दो, यश दो और उनके भीतर मौजूद काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो। ॥9॥

समस्त रोगों का नाश करने वाली हे माता चण्डिके, जो कोई भी भक्तिपूर्वक तुम्हारी स्तुति करते हैं, उन्हें तुम ज्ञान दो, विजय दो, यश दो और उनके भीतर मौजूद काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो। ॥10॥

हे चण्डिके, इस ब्रह्माण्ड में जो भी भक्तिपूर्वक तुम्हारा पूजन करते हैं, उन्हें तुम ज्ञान दो, विजय दो, यश दो और उनके भीतर मौजूद काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो। ॥11॥

मुझे सौभाग्य और आरोग्य अर्थात स्वास्थ्य दो। मुझे परम सुख दो। हे देवी, तुम मुझे ज्ञान दो, विजय दो, यश दो और मेरे भीतर मौजूद काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो। ॥12॥

जो मेरे प्रति द्वेष रखते हैं, उनका नाश करो तथा मेरे बल में वृद्धि कर हे देवी, तुम मुझे ज्ञान दो, विजय दो, यश दो और मेरे भीतर मौजूद काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो। ॥13॥

हे देवी! मेरा कल्याण करो। मुझे परम धन को प्रदान कर हे देवी, तुम मुझे ज्ञान दो, विजय दो, यश दो और मेरे भीतर मौजूद काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो। ॥14॥

देवी अम्बिके, तुम्हारे चरणों में देवता और असुर दोनों ही अपने माथे के मुकुट की मणियों का स्पर्श करते हैं। हे देवी, तुम मुझे ज्ञान दो, विजय दो, यश दो और मेरे भीतर मौजूद काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो। ॥15॥

तुम अपने भक्तजन को, विद्वान, यशस्वी, तथा लक्ष्मी को धारण करने वाला बनाओ तथा उन्हें तुम ज्ञान दो, विजय दो, यश दो और उनके भीतर मौजूद काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो। ॥16॥

हे प्रचंड दैत्यों के अभिमान को चूर करने वाली चण्डिके देवी, मुझ शरणागत को ज्ञान दो, विजय दो, यश दो और मेरे भीतर मौजूद काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो। ॥17॥

चतुर्भुज ब्रह्मा जी के द्वारा प्रशंसित, हे चार भुजाओं वाली परमेश्वरि, तुम्हें मेरा नमस्कार है। तुम मुझे ज्ञान दो, विजय दो, यश दो और मेरे भीतर मौजूद काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो। ॥18॥

हे देवी अम्बिके, स्वयं भगवान् श्री हरी विष्णु भी नित्य-निरंतर तुम्हारी हीं भक्तिपूर्वक स्तुति करते रहते हैं। तुम मुझे ज्ञान दो, विजय दो, यश दो और मेरे भीतर मौजूद काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो। ॥19॥

हिमालय-कन्या पार्वती के स्वामी अर्थात भगवान् शंकर के द्वारा प्रशंसित होने वाली, हे परमेश्वरि, तुम्हें नमस्कार है। तुम मुझे ज्ञान दो, विजय दो, यश दो और मेरे भीतर मौजूद काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो। ॥20॥

इन्द्राणी के पति अर्थात भगवान् इंद्र के द्वारा सद्भाव से पूजित होने वाली हे परमेश्वरि, तुम्हें नमस्कार है। तुम मुझे ज्ञान दो, विजय दो, यश दो और मेरे भीतर मौजूद काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो। ॥21॥

प्रचंड भुजदण्डों वाले राक्षसों का भी अभिमान नष्ट कर देने वाली हे देवी, तुम्हें नमस्कार है। तुम मुझे ज्ञान दो, विजय दो, यश दो और मेरे भीतर मौजूद काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो। ॥22॥

देवी अम्बिके, आप अपने भक्तजनों को सदा-सर्वदा असीम आनंद को प्रदान करने वाली हैं। मुझे ज्ञान दो, विजय दो, यश दो और मेरे भीतर मौजूद काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो। ॥23॥

हे माता तुम मुझे मनोहर पत्नी प्रदान करो, जो दुर्गम संसार से तारने वाली तथा उत्तम कुल में जन्मी हो। ॥24॥

जो भी जीव इस स्तोत्र का पाठ करने के उपरांत, श्री सप्तशती महास्तोत्र का पाठ करता है, वह सप्तशती की जप-संख्या से मिलने वाले श्रेष्ठ फल को प्राप्त होता है। साथ ही उसे अकूत संपत्ति की भी प्राप्ति होती है। ॥25॥

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